Thursday, January 29, 2009

निभाया तो सही...

सफ़र की शुरुआत में
मेरे भीतर का डर
सालता था मुझे
कि कहीं किसी दिन
तुम भी बदल तो न जाओगे
सबकी तरह।

अच्छी तरह याद है मुझे
तब विश्वास दिलाया था मुझे तुमने
पूरे आत्मविश्वास के साथ-
कि पूरी क़ोशिश करूंगा
न बदलने की…!
कि जैसा मैं हूँ
वैसा ही रहूंगा
हमेशा!

और फिर एक दिन
सबकी तरह
चले गये तुम भी
सफ़र के बीच से ही
मुझे तन्हा छोड़कर।

नहीं……
कोई शिक़ायत नहीं है
मेरे मन में
तुम्हें लेकर।
क्योंकि तुमने तो पूरी तरह
निभाया है अपना वादा;
तुम बिल्क़ुल नहीं बदले;

तुम तो हमेशा
ऐसे ही थे
…सबकी तरह!

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