Friday, February 13, 2009

स्ट्यूपिड लोग

स्टीयरिंग संभालते हुए
याद आ गया अचानक
कि शुरू-शुरू में
बीच चौराहे पर
बंद हो जाती थी कार
और चारों तरफ़ से
हॉर्न बजाने लगते थे लोग।

"इतने बेसब्र क्यों हो जाते हैं?
क्या दो मिनट सब्र नहीं कर सकते?
दो मिनट रुक जाएंगे
तो कौन सी आफ़त आ जायेगी?
हॉर्न तो ऐसे बजा रहे हैं
जैसे ये हमेशा से ही
परफ़ेक्ट रहे हैं……"

और न जाने क्या-क्या
अपने आप से बतियाते हुए
स्टार्ट कर लेती थी मैं
अपनी कार
और संभाल कर
धीरे-धीरे छोड़ दिया करती थी रास्ता
बहुत तेज़ चलने वालों के लिये।

लेकिन अब
बंद नहीं होती है मेरी गाड़ी।
कैसे फ़र्राटे से दौड़ती है
सड़क के बीचों-बीच।

सोचते-सोचते
अचानक
स्लो हो जाती है
मेरी स्पीड
……
…हे भगवान!
फिर जाम
लगता है
रेड-लाइट पर
किसी की गाड़ी
बंद हो गयी है।

बराबर में खड़ा स्कूटर वाला बोला-
"कोई नौसिखिया लगता है
गाड़ी पर 'एल' लिखा है।"

सुनकर तिलमिला जाती हूँ मैं
और झल्लाकर बोलती हूँ-
…बेवक़ूफ़ कहीं के!
चलानी नहीं आती
तो मेन रोड़ पर
निकलते ही क्यों हैं?

……जैसे-तैसे साइड से
लहरा कर
बड़बड़ाती हुई
निकल जाती हूँ मैं-
"स्ट्यूपिड लोग!"

14 comments:

  1. ऐसा ही होता है, समय के साथ भूमिकाएं बदल ही जाती हैं.

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  2. मुक्ता जी, यह एक सच्चाई है जिसे आपने कविता में खूबसूरती से उतारा है। बधाई !

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  3. शायद ये नै कविता है
    आपको पड़कर अच्छा लगा ,हिन्दी ब्लॉग जगत मैं सक्रियता बनाएं रखें ,धन्यवाद्
    अपनी अपनी डगर sarparast.blogspot.com

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  4. सुंदर
    भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।
    लिखते रहि‌ए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
    कविता,गज़ल और शेर के लि‌ए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
    मेरे द्वारा संपादित पत्रिका देखें
    www.zindagilive08.blogspot.com
    आर्ट के लि‌ए देखें
    www.chitrasansar.blogspot.com

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  5. वाकई,ऐसे ही बदल जाते हैं हम और हमारी सोच!

    हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका हार्दिक स्वागत है. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाऐं.

    एक निवेदन: कृप्या वर्ड वेरीफिकेशन हटा लें तो टिप्पणी देने में सहूलियत होगी.

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  6. बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

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  7. सच्ची कविता है। अपने वक्त पर विस्मृति की चादर गहरी होती जाती है,नतीजतन दूसरों की स्थिति में खुद को रख पाना दूभर और व्यर्थ लगता है।

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  8. शुभकामनायें
    अच्छा लिखते हो

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  9. हिंदी लिखाड़ियों की दुनिया में आपका स्वागत। खूब लिखे। अच्छा लिखें हजारों शुभकामंनाए।

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  10. ब्लाग काफी अच्छा है। धन्यवाद। मेरे ब्लाग का भी अवलोकन करना चाहें तो स्वागत है।
    http://bhoolibisari.blogspot.com

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  11. shabdo me sachchayi hai, aise hi sach likhte rahiye.

    -------------------------------"VISHAL"

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  12. बहुत सटीक ... जीवन में आये इस पल को आपने हरा कर दिया !!!!

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  13. aj ki duniya main hamari jindagi hamari saanson se bhi jyada tez bhag rahi hai. main is kavita ke liye sirf itna hi kah sakti hun ki is bhag-daud wali jindagi main se jo koi bhi apna ek pal nikalkar is kavita ko pad paega woh sahi maynon main khushnaseeb hoga.mukta ji ka viksit dristikon kabil-e-tarif hai.chand hi lafjon main unhone jindagi ki vyast ta ko samet diya hai.ek jaldbaazi ki jhallahat jo aaj hum sab main kahin na kahin ghar kar chuki hai usko lafzon main aatmsat kar lena koi asan bat nai hai.meri taraf se mukta ji ko sukhi jeevan ki hardik shubhkaamnayen.

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  14. मुझे लगा जैसे मैंने ही लिखा है. वही शैली वही सोच. शब्दों का विन्यास वही. शायद हम कुछ ज्यादा ही प्रेरित हैं गुलज़ार साहब से.

    अच्छा लगा पढ़ कर. शुभकामनाए!

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